Akshay tritiya special: गहने खरीदने से कैसे होता है नुकसान? गोल्ड बांड लेने से क्या होता है फायदा? जानिए विस्तारपूर्वक


Akshay tritiya स्पेशल

इस बार अक्षय तृतीया 22 अप्रैल को पड़ रही है. एक व्यक्ति के घर में पिछले 4 दिन से यही प्लानिंग हो रही है कि कौन-सी ज्वैलरी खरीदी जाए. उधर वह व्यक्ति सोच रहा है कि गोल्ड तो वो खरीद ले, लेकिन ज्वैलरी नहीं क्योंकि इंवेस्टमेंट के लिहाज से इसमें नुकसान ज्यादा है, फायदा कम. अब इसी बात को वो अपनी पत्नी को कैसे समझाए, ये उसकी समझ में नहीं आ रहा. तो ऐसे लोगों की मदद हम कर देते हैं, चलिए समझाते हैं आपको…

जब भी हम अपने पड़ोस के जौहरी के पास गहने, सिक्के या कोई अन्य सामान खरीदने जाते हैं तो वह हमें बताता है कि वापसी के समय हमें इसका 90 प्रतिशत या उससे कम मिलेगा। वहीं अगर हम किसी ब्रांडेड स्टोर से ज्वैलरी खरीदने जाते हैं तो वे हमसे सोने की कीमत के हिसाब से प्रतिशत में मेकिंग चार्ज वसूलते हैं। तो सोने के आभूषणों में निवेश करने के नुकसान यहीं से शुरू होते हैं।

मेकिंग चार्ज का उठाना पड़ता है नुकसान

सोने को सोने के आभूषण में बदलना एक श्रमसाध्य कार्य है। वहीं, इसे बनाने में काफी बर्बादी भी होती है। इसलिए कोई भी जौहरी इसके लिए अपनी जेब से भुगतान नहीं करता बल्कि इसकी भरपाई मेकिंग चार्ज काटकर या पुराना सोना खरीदकर करता है। पुराने समय में इस मामले में सोने की शुद्धता भी एक बड़ी समस्या थी, लेकिन अब हॉलमार्क ज्वैलरी का चलन बाजार में है।

जब आप मुसीबत के समय इन गहनों को जौहरी के पास ले जाते हैं, तो वह इन शुल्कों को काटकर आपको सोने का मूल्य देता है। आम तौर पर कुछ सालों में सोने की कीमत बढ़ जाती है, इसलिए लोग सोचते हैं कि उन्हें सोने के गहनों पर बढ़ी हुई कीमत मिलेगी, लेकिन मेकिंग चार्जेज के नुकसान से आपका रिटर्न ऑन इन्वेस्टमेंट (आरओआई) कम हो जाता है।

अब भारत में ब्रांडेड ज्वैलर्स सोने के सिक्कों पर 3 प्रतिशत और बाकी के गहनों के प्रकार के आधार पर 25 प्रतिशत तक मेकिंग चार्ज लेते हैं। वहीं, स्थानीय ज्वैलर्स भी पुराना सोना खरीदने पर 10 फीसदी तक की कटौती करते हैं या 5 से 7 फीसदी का वेस्टेज चार्ज लेते हैं। इसलिए जब आप सोने के आभूषणों को निवेश की दृष्टि से देखते हैं तो आपको मेकिंग चार्ज या वेस्टेज चार्ज का नुकसान उठाना पड़ता है।

गोल्ड बांड में निवेश के लाभ 

अब बात करते हैं गोल्ड बॉन्ड की तो सरकार ने सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड की शुरुआत फिजिकल गोल्ड की डिमांड को कम करने के लिए ही की थी। इसका मकसद देश में सोने के आयात को कम करना भी है। भारतीय रिजर्व बैंक हर साल कई चरणों में गोल्ड बांड जारी करता है। इसमें आम आदमी 1 ग्राम सोने से लेकर 4 किलो तक की कीमत का निवेश कर सकता है। इसे किसी भी बैंक या पोस्ट ऑफिस से लिया जा सकता है।

गोल्ड बांड की खास बात यह है कि इसमें सोने के बाजार मूल्य के हिसाब से आपका पैसा बढ़ता रहता है। वहीं, आपको हर साल अलग से 2.5 फीसदी ब्याज मिलता है। यानी दोहरा मुनाफा, मेकिंग चार्ज की लागत भी बची और सोने की कीमत बढ़ने के साथ-साथ ब्याज भी मिला. वहीं, 5 साल बाद प्री-मैच्योरिटी का फायदा उठाकर इसे भुनाया भी जा सकता है। जबकि 8 साल बाद मैच्योरिटी पर आपको उस समय की गोल्ड वैल्यू के हिसाब से रिटर्न मिलता है।

हालाँकि, गोल्ड बॉन्ड में एक कमी है कि उनकी तरलता सोने के गहनों के समान नहीं होती है। मतलब मुश्किल समय में आप इसे किसी के पास गिरवी नहीं रख सकते हैं या आधी रात में किसी जौहरी के पास जाकर इसे बेच नहीं सकते हैं। लेकिन एक बात और है कि शेयर बाजार में डीमैट पद्धति से भी इसकी ट्रेडिंग की जा सकती है।