गोपालगंज,
गोपालगंज के गफूर चाचा का नाम अब लोगों के जुबान से फ़ुर्र हो चुका है, अब आए दिन तो छोड़िए उनके जन्मदिन पर भी वह लोगों को याद नहीं आते है. गफूर चाचा गोपालगंज ही नहीं बल्कि बिहार की एक ऐसे शख्शियत थे, जिन्हे भूलना इतना आसान भी नहीं है। किंतु हैरत की बात यह है कि आज ना सिर्फ उन्हे कोई याद नहीं करता बल्कि लोग अब उनके नाम से भौंचक्के हो जाते हैं. यूं कहे तो अब उनकी भूली बिसरी यादें ही शेष बची हैं.
हम बात कर रहे हैं उस शख्सियत की जो गोपालगंज की धरती के लाल और बिहार के तेरहवें मुख्यमंत्री अब्दुल गफूर यानी गफूर चाचा के नाम से जाने जाते है. बता दें सन् 1918 के 18 मार्च को अब्दुल गफूर का जन्म गोपालगंज की कोख से बरौली थाने के सरेया अख्तियार गांव में एक गरीब परिवार के बीच हुआ था. उनकी प्रारंभिक शिक्षा माधव हाईस्कूल में हुई थी, बाद में उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से एमए की डिग्री हासिल किए तथा वकालत की भी पढ़ाई की.
1938 में माधव हाईस्कूल मांझा में उन्होंने बतौर शिक्षक भी काम किया और उसी समय से राजनीति में वह सक्रिय भूमिका भी निभाने लगे. सन् 1942 के आंदोलन में उन्होंने सक्रिय भूमिका निभाई थी. उसी वर्ष आजाद हिन्द फौज के संस्थापक महान क्रांतिकारी सुभाष चन्द्र बोस को चंपारण से अपने पैतृक गांव बुलाया था. वर्ष 1952 ,1957,1977 और 1980 में वह विधानसभा का सदस्य चुने गये. वहीं 1968 में वह विधान परिषद का सदस्य भी चुने गए थे. जबकि सन् 1977 में जयप्रकाश नारायण आंदोलन के समय वे बिहार के मुख्यमंत्री भी रहे थे.
बता दें कि अब्दुल गफूर ने चार बार बरौली विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया था और जिले को एक अलग पहचान दिलाई थी. उनकी बदौलत ही गोपालगंज को जिले का दर्जा भी मिला. साथ ही सरफरा मांझी हाइवे निर्माण उन्हीं के कार्यकाल की उपलब्धि रही. वहीं सन् 1984 में उन्होंने सीवान लोकसभा सीट का प्रतिनिधित्व किया था. जबकि सन् 1991 और 1998 में गोपालगंज से लोकसभा सीट का प्रतिनिधित्व किया था तथा राजीव गांधी की सरकार में भी वह मंत्री रहे.
बताते चलें कि अब्दुल गफूर ने आजादी की जंग भी लड़ी थी और उन्हें जेल भी जाना पड़ा था. वे देश के जाने-माने नेताओं में एक थे. ज्ञात हो कि बिहार के तेरहवें मुख्यमंत्री अब्दुल गफूर अब इस दुनिया में नहीं हैं, यादें धुंधली होती जा रही हैं.
बिहार के गोपालगंज की धरती को पहचान दिलाने वाले चाचा गफूर तो अब तो जिले में जन्म दिन पर भी याद नहीं आते हैं।