Gopalganj: बड़े बड़े अपराधिक मामलों में तत्कालीन एसडीपीओ संजीव कुमार ने अपराधियों को दिया है क्लीन चिट, कमाई अकूत संपत्ति


गोपालगंज, बिहार
रिपोर्ट : सत्य प्रकाश

गोपालगंज जिले में पदस्थापित तत्कालीन एसडीपीओ संजीव कुमार पहले तो यहीं नगर थाना में इंस्पेक्टर थे और विभागीय प्रोसीडिंग्स के बाद भी यहीं के एसडीपीओ बन बैठे .
ओहदा एसडीपीओ का था पर बैठते थे एसपी के नेम प्लेट के सामने ताकि अधूरी पहचान पूरी हो सके.
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तत्कालीन एसडीपीओ संजीव कुमार की करतूतें काफी चर्चा का विषय रहीं, गोपालगंज की एक अदालत ने इनके कारनामों पर एक पत्र भी लिखा था. 05 मई 2022 को विश्वम्भरपुर थाना क्षेत्र में मारपीट एवं फायरिंग की घटना घटित हुई थी,
जिसमें दोनों पक्षों से फायरिंग का आरोप था. इस मामले में दो अलग-अलग प्राथमिकी 74/22 और 75/22‌ दर्ज कराई गई थी. 75/22 में धारा 147/148/149/341/323/307/504/एवं 27 आर्म्स एक्ट लगा था. अजय राय को गोली लगी थी और यह कांड एसपी ने सत्य करार दिया था.

परन्तु तत्कालीन एसडीपीओ संजीव कुमार ने इतनी बड़ी घटित घटना के मामले में हत्या के प्रयास की धारा 307 को हटा दिया था. कांड से हत्या के प्रयास की धारा हटाये जाने पर गोपालगंज के प्रभारी मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी मानवेन्द्र मिश्र ने गंभीरता से लिया और इनकी कांड के मामले में इनकी गतिविधियों के विरूद्ध विभागीय कार्रवाई के लिए पत्र निर्गत किया था.
   
अभी हाल फिलहाल स्थानांतरण के पूर्व एसडीपीओ संजीव कुमार ने एक और गंभीर तेजाब के मामले में अभियुक्तों से मिलकर उसे मदद पहुंचाने की जहमत उठा लिया. वह मामला बैकुंठपुर थाना क्षेत्र के अन्तर्गत का है. बैकुंठपुर थाना कांड संख्या 173/22 जो तेजाब से मारने की कोशिश की लोमहर्षक घटना रही. तथा इस कांड 173/22धारा 341/323/504/326(A) एवं 34भादवि में खुद तत्कालीन एसडीपीओ संजीव कुमार ने केस को, पर्यवेक्षण टिप्पणी में सत्य करार दिया और गोपालगंज के आरक्षी अधीक्षक ने भी प्रतिवेदन 2 में केस को सत्य करार दिया था.
  
इसी दौरान अनुसंधान कर्ता अविनाश राय द्वारा अभियुक्तों की गिरफ्तारी के लिए सूचक से रूपये की मांग की गई और सूचक के पिता ने रुपया न देकर उसका आडियो वायरल कर दिया. अब तो केस को उल्टा होना ही था, सत्य बात को झूठा साबित करने के लिए एसडीपीओ ने अभियुक्तों को आवेदन तैयार करा डी आई जी सारण के यहां भेज दिया और फिर डी आई जी के यहां से जांच एसडीपीओ संजीव कुमार को मिल गयी और संजीव कुमार ने अनुसंधान कर्ता से मिलकर केस को एक वाक्य में ,असत्य बता दिया तथा उसको अनुमोदन के लिए डी आई जी सारण के यहां भिजवा दिया. इतना काम एसडीपीओ संजीव कुमार ने स्थानांतरण के पूर्व जाते जाते अभियुक्तों के लिए कर ही दिया.
   
बड़ा अहम् सवाल है कि अपराध करने वाले लोग घटना स्थल पर अपनी खुद की मोबाइल ले जाते हैं क्या? मोबाइल का टावर लोकेशन शराफत करने वालों के लिए लिया जाता है,जो कभी अपराध किए नहीं. इस कांड बैकुंठपुर 173/22 के अभियुक्तों का तो अपराध से पहले से रिश्ता रहा है और 1995 तथा 2004 की अपराधिक घटनाओं में चार्जशीटेट भी हैं.
इस कांड में घटना के दिन कांड के सभी अभियुक्त घर छोड़कर एक साथ आखिर बाहर क्यों चले गये थे?जो उनका टावर लोकेशन दूर दराज बता रहा है.

अब यह मामला डी आई जी सारण के यहां अनुमोदन के लिए लम्बित है. डी आई जी सारण भी निचले अधिकारियों की लिखी हुई बात पर मुहर लगा देंगे या खुद अपनी तर्क शक्ति का प्रयोग कर अपना कोई मंतव्य जाहिर कर उचित निर्देश देंगे,यह तो समय बताएगा. फिलहाल पीड़ित के न्याय मिलने पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं.