गोपालगंज, बिहार
रिपोर्ट : सत्य प्रकाश
गोपालगंज में गया जिले के दशरथ मांझी की कहानी दुहरायी जा रही है. बता दें, जिस प्रकार दशरथमांझी ने वर्षों अथक मेहनत कर पहाड़ को काटकर सरल सुगम रास्ता बना दिया, ठीक उसी प्रकार गोपालगंज जिले के बैकुण्ठपुर प्रखंड के हेमुछपरा गांव के नंदलाल सिंह ने 31वर्षों तक बंगराघाट पुल निर्माण संघर्ष समिति का बैनर लेकर गांव गांव घूम कर जनमत तैयार कर अपनी लड़ाई जारी रखा.
जब कभी किसी नेता मंत्री का कार्यक्रम होता वे अपनी मांगों से सम्बन्धित बैनर लिए वहां हाजिर होते. आखिर उनके जज्बे के आगे सरकार नतमस्तक हुई और बंगरा घाट पुल के निर्माण को स्वीकृति मिल सकी.
दशकों बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कर कमलों द्वारा बंगरा घाट पुल निर्माण की आधार शिला रखी गई और नंदलाल सिंह हीं नहीं पूरे इलाके के लोगों का सपना पुरा हुआ. आज पुल निर्माण भी हुआ और लोगों आवाजाही भी हो रही है. इस पुल के बन जाने से पूर्वांचल का सीधा संपर्क मुजफ्फरपुर ,पू. चंपारण, प. चंपारण से बन गया और दूरी बिल्कुल कम हो गयी.
वही नंदलाल अब दूसरी मुहिम को गति दे रहे हैं. विद्युत शवदाह गृह की मांग को लेकर पुन:वैसा ही बोर्ड लेकर साईकिल से यात्रा पर निकल पडे़ हैं. लोगो का जनमत तैयार करने मे संघर्षरत हैं. साथ ही नंदलाल ने अबतक निशुल्क 50000 हजार से अधिक पेड़ लगाये हैं .उनकी नर्सरी है और वे गांव गांव पेड़ भी लगाते फिरते हैं.
उनका कहना है कि गंडक नदी में यूं हीं लोग शवों को अधजला प्रवाहित कर देते हैं, जिससे गंडक नदी काफी प्रदूषित हो रही है. लोग लकड़ी के आभाव में शवों को ठीक से नहीं जला पाते हैं. नंदलाल सिंह की शवदाह गृह बनाने की मांग की मुहिम को अगर पंख लग जाते हैं तो निसंदेह यह मुहिम मील का पत्थर साबित होगा.
गोपालगंज के पूर्वी इलाके के बंगरा घाट पर शवदाह गृह बनाने का अगर नंदलाल का सपना पूरा होता है तो गंडक नदी को प्रदूषणमुक्त करने में काफी सहुलियत हो सकती है.
वैसे भी गंडक के किनारे डुमरिया घाट के समीप विद्युत शवदाह गृह प्रस्तावित है. पर अभी उक्त स्थल पर भी कार्य बाधित है.