नालंदा, बिहार
रिपोर्ट : दीपक विश्वकर्मा
बिहार शांति मिशन के अध्यक्ष एवं नालंदा के पूर्व विधायक रामनरेश सिंह ने कहा कि इस बार बाबू वीर कुंवर सिंह की जयंती समारोह महल पर स्थित बाबू वीर कुंवर सिंह शौर्य मंदिर स्मारक के प्रांगण में सादगी से मनाई जाएगी। उन्होंने कहा कि विधि व्यवस्था और ईद त्योहार को देखते हुए यह निर्णय लिया गया है। साथ ही उन्होंने कहा कि इस समारोह में कई राजनेता और स्थानीय लोग हिस्सा लेकर रणबांकुरे बाबू वीर कुंवर सिंह को याद करेंगे।
कौन हैं रणबांकुरे बाबू वीर कुंवर सिंह
कुंवर सिंह का जन्म एक राजपूत परिवार (13 नवंबर 1777 - 26 अप्रैल 1858) में हुआ था, जो 1857 में प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक सैनिक और नायक थे। अन्याय विरोधी और स्वतंत्रता प्रेमी बाबू कुंवर सिंह एक कुशल सेनापति थे। उन्हें 80 साल की उम्र में भी लड़ने और जीतने के लिए जाना जाता है।
वीर कुंवर सिंह का जन्म 13 नवंबर 1777 को बिहार के भोजपुर जिले के जगदीशपुर गांव के एक क्षत्रिय जमींदार परिवार में हुआ था। उनके पिता बाबू साहबजादा सिंह प्रसिद्ध परमार राजपूत शासक राजा भोज के वंशजों में से थे। उनकी माता का नाम पंचरत्न कुंवर था। एक ही परिवार के उनके छोटे भाई अमर सिंह, दयालु सिंह और राजपति सिंह और बाबू उदवंत सिंह, उमराव सिंह और गजराज सिंह जाने-माने जागीरदार थे और हमेशा अपनी स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए लड़ते रहे।
उन्होंने आखिरी लड़ाई 23 अप्रैल 1858 को जगदीशपुर के पास लड़ी थी। उन्होंने ईस्ट इंडिया कंपनी के भाड़े के सैनिकों को पूरी तरह खदेड़ दिया। उस दिन बुरी तरह घायल होने के बावजूद जगदीशपुर किले से "यूनियन जैक" नाम के झंडे को नीचे उतार कर इस बहादुर ने दम तोड़ दिया। वहां से अपने किले में लौटने के बाद 26 अप्रैल 1858 को उन्होंने शहादत प्राप्त की।