जामताड़ा
क्या मौत का कारण कुछ भी हो सकता है? कुछ ऐसे कारण भी मौत का कारण बन जाते हैं, जिसे ग्रामीण भूतों का प्रकोप समझकर फिर श्रापित मानकर अंधविश्वास की राह पर चले जाते हैं. जामताड़ा के एक स्कूल में भी कुछ ऐसा ही हुआ. स्कूल में एक के बाद एक हुई तीन मौतों ने स्कूल के शिक्षकों और ग्रामीणों को इस कदर डरा दिया कि अब स्कूल में ताला लटका हुआ है.
मामला जामताड़ा का है, जहां के शिक्षक स्कूल नहीं जाना चाहते और ग्रामीण बच्चों को स्कूल नहीं भेजना चाहते. आलम यह है कि स्कूल में ताला लटका हुआ है. बच्चों की शिक्षा ग्राम शिक्षा समिति के अध्यक्ष के कच्चे मकान में होती है. डीएसई दीपक राम ने स्कूल का दौरा किया लेकिन उन्होंने भी स्कूल को बंद पाया. उन्हें समझाइश दी गई कि अंधविश्वास से बाहर निकलें, लेकिन इसके बावजूद लोग अनहोनी से अभी भी डरे हुए हैं.
दरअसल, जामताड़ा के प्राथमिक विद्यालय छोटूडीह में कार्यरत तीन लोगों की अचानक मौत हो गयी है, जिनमें से पहले स्कूल शिक्षक बाबूधन मुर्मू थे. जिनकी असमय मौत हो गई थी. शिक्षक की मौत के बाद जब उनके बेटे ने स्कूल आकर छात्रों को पढ़ाने की कोशिश की तो उसकी भी मौत हो गई. इतना ही नहीं स्कूल के रसोइया छटामुनि मुर्मू की भी 30 साल की उम्र में अचानक मौत हो गई. अब एक के बाद एक हुई तीन मौतों ने लोगों को पूरी तरह से डरा दिया है.
इस स्कूल में कार्यरत शिक्षक का नाम नुनुधन मुर्मू है, जो अब ऐसी बीमारी की चपेट में आ गया है कि वह बिना सहारे के अपने बिस्तर से उठ भी नहीं सकता. ऐसे में एकमात्र बचा शिक्षक सुरेंद्र टुडू हॉल फिलहाल बीमार है. करीब एक महीने से अस्पताल में भर्ती थे. अब स्कूल भवन छोड़कर निजी घर में बच्चों को पढ़ाते हैं.
छोटूडीह जामताड़ा जिले के फतेहपुर प्रखंड का आदिवासी बाहुल्य गांव है. जहां आस्था और अविश्वास पर अंधविश्वास हावी हो गया है. गांव में बने भव्य प्राथमिक विद्यालय को भूतहा डेरा घोषित कर दिया गया है. अभिभावक अपने बच्चों को डर के मारे स्कूल नहीं भेजते. इतना ही नहीं शिक्षक भी स्कूल नहीं आ रहे हैं. शिक्षक ग्राम शिक्षा समिति अध्यक्ष के कच्चे मकान में पठान पढ़ाने का कार्य कर रहे हैं.